माननीय प्रधानमंत्री जी मै आप की सारी बातों का समर्थन करता हूँ, जो आप कहते
है, करते है, लेकिन एक बात बताइए की आप की सरकार और दूसरी सरकारों में क्या फर्क
है, वे भी आप की तरह ही बात करते थे, फर्क सिर्फ इतना है की आप अपनी बात ज्यादा
असरदार तरीके से करते है | आप केरल में जो
बोलते है, सही है, लेकिन करते नहीं, उसकी जिम्मेदारी नहीं लेते | सुषमा जी UN में जो कहती है, वो भी सही
है, लेकिन किया क्या, सिर्फ कहा, बस हमारी जिम्म्मेदारी ख़तम | और अगर ख़तम तो फिर
चुनाव के समय क्या था | आज आपने पुरे विश्व का सफ़र किया | लेकिन आप के समर्थन में
कितने है, जो पाकिस्तान को अलग थलग कर दे | इसका जवाब शायद आप ना दे पाए | लेकिन
इसका जवाब मैं दे सकता हूँ, जवाब है कोई
नहीं | फिर आप की निति और दूसरों की विदेश निति में क्या अंतर | वो भी तो यही कर
रहे थे भाषण, और भी बस भाषण | ध्यान रखिये आप बहुत अच्छे से तैयारी करे, खूब मेनहत
करे और परीक्षा में रिजल्ट आया तो फेल | अपना पिता जिसने हमें पैदा किया है वो भी
हमारी तैयारी पर शक करेगा | फिर हम तो पडोसी है | जब आप कहते है, शहीदों की शहादत
बेकार नहीं जाएगी, या हम क़ुरबानी याद रखेगें तो क्या | अरे याद तो वो बात भी रक्खी
जाती है, जब आप किसी पराई स्त्री से छेड़ छाड़ करते है या जब आपकी घर की महिला के
साथ कोई अभद्र व्यव्हार करता है | दोनो ही बातों में सम्मान नहीं है ना आपकी बात
में और ना ही मेरे उदाहरण में | जब आप को पता चलता है की आप कुछ नहीं कर पा रहे है, तो आप सिन्धु नदी समझोते की बात करने लगते है | ये बात को घुमाने का एक तरीका का है और कुछ नही | चलिए
मैं एक बात आप से और आपके सरकार में शामिल
सभी नेताओ मंत्रियों से पूछता हूँ की अगर आप के घर से कोई भाई बेटा भी कश्मीर और सरहद पर मर जाता तो क्या तब भी आप सब
इन्ही शब्दों का प्रियोग करते | भाई साहब जब आप के घर से कोई मर
जायेगा सड़क पर भी और मैं यही शब्द
आप लोगो से आकर कहूँगा तो शायद आप मुझे गोली
मार देंगे और नहीं मारेगें तो ये हाल तो कर ही देंगे की मैं
किसी काबिल ना रहूँ |
माननीय प्रधानमंत्री जी दूसरों को उपदेश देना शायद इस दुनिया का सबसे सस्ता और
आसान काम है | लेकिन जब अपने पर गुजरती है तो इन्सान त्राहिमाम त्राहिमाम कर उठता
है | क्या आप के पास इतनी हिम्मत है की आप सिन्धु नदी समझोता रद्द कर सके | जवाब है नहीं | आज आप बहुमत में है और एक
बिल पास नहीं करवा पा रहे है, कहते है की, राज्य सभा में आप को बहुमत नहीं है | जब
की हाईस्कुल की किताबों में पढाया जाता है की, लोक सभा अगर कोई बिल पास कर के
राज्य सभा में भेज दें तो राज्य सभा की
औकात नहीं है की उस बिल को रोक दे | और आप
बहुमत का रोना रो रहे है | आप की हालत भगवान श्री सत्यनारायण की कथा में उस
बनिए की तरह है जो हर बार कथा सुनने के समय कहता है की मेरा ये काम हो, जायेगा तो
कथा सुनुगा, लेकिन काम हो जाने पर फिर अगला बहाना | आपकी पिछली सरकार राम मंदिर के
मुद्दे पर आई थी | लेकिन किया कुछ नहीं, वही घिसा पिटा भाषण बहुमत नहीं है | न्ययालय
के आदेश का पालन करेगे | तो फिर भैया पहले बोला क्यू | पहले श्री राम के नाम की
दलाली और अब काला धन /पकिस्तान/ चीन के नाम की दलाली |
माननीय प्रधानमंत्री जी याद रखियेगा जब लोगों ने वाजपेई को नहीं छोड़ा तो
तुम्हे क्यू छोड़ देंगे | लोगो को इस बात बात का अहसास मत दिलवाओ की यार इससे तो अच्छी कांग्रेस ही थी | आप को परिवर्तन
के लिए चुना गया है ना की परिवर्तित होने के लिए या सिर्फ मन की
बात करने के लिए |
माननीय प्रधानमंत्री जी आज देश की समस्या आपकी समस्या है और देश में ऐसा कौन
है जो एक पूर्ण बहुमत से आई सरकार को आँख
दिखा दे | और अगर वो आँख दिखा रहा है तो सिर्फ इसका एक कारण है की हम सिर्फ बकैत
हो गए है आज पडोसी के हर पानी नहीं आ रहा
है वो
इसके लिए आप को जिम्मेदार मान रहा है | वो ये कह सकता है
क्यू की उसे अपनी नपुंसकता छिपाने के लिए मोदी जी का सहारा चाहिए | वो अपनी
जिम्मेदारियों को आप पर थोपना चाहता है | वह ऐसा
कर सकता है क्यू की उसे पता है की आप
पलट कर वार नहीं करेगे | बचपन में एक कहानी सुनाई जाती थी की, एक हाथी बाजार में
चला जाता है और कुत्ते उस भोकते रहते है
लेकिन ये अधूरी कहानी है | पूरी
कहानी ये है की जब हाथी कुछ नहीं करता तो
कुत्तों की हिम्मत बढ़ जाती है और वो सब मील कर उस हाथी को नोचने लगते है | हाथी इन सब से दुखी हो जाता
है उसे दुखी देख कर गधा उसे समझाता है की जरुरत से ज्यादा शराफत कायरता की निसानी
है | हाथी को ये बात समझ में
आ जाती है और अगले दिन जब वो
बाजार से गुजरता है तो कुत्ते फिर उस पर कूदते है लेकिन हाथी इस बार सावधान है |
वो एक कुत्ते को पैर से दबाता है दुसरे को सुढ से पटकता है | ये देख सारे
कुत्तों को अपनी औकात पता चलती है | उस
दिन के बाद कोई कुत्ता उस पर नहीं भोक्ता
बल्कि उसके आने पर रास्ता छोड़ देतें है |
यहाँ आप
की स्थिति उस हाथी जैसी है और आप चाहे तो मुझे गधा समझ सकते है | क्या आप
ने कभी सोचा है की आज चीन के लिए आपके पास कोई
पोलिसी नहीं है | वो देश पाकिस्तान के कंधे पर बन्दुक रख कर भारत पर गोली दाग रहा है | इतने देशों की यात्रा
की लेकिन कोई साथ नहीं | तो फिर काहे की संबंधों की नौटंकी | वैसे आप मुझसे ज्यादा
समझदार है और मुझसे ज्यादा काबिल लेकिन एक बात कहना चाहूँगा, की जिसके शरीर पर
जख्म होता है, इलाज भी खुद करता है | फिर
पडोसी कितना भी अच्छा क्यू ना हों वो सिर्फ उपदेश दे सकता है या हाल चाल पूंछ सकता
है | आप अलगाववादी नेताओ का इलाज नहीं कर सके
| कश्मीर में जो भी समस्या है वो इनकी वजह
से है | आप दाउद का भी कोई इलाज नहीं कर
सके | पाकिस्तान से ज्यादा शुभ चिन्तक तो उसके भारत में बैठे है | अरे उसे
तो छोडिये आप शत्रुघ्न सिन्हा पर लगाम नहीं लगा सके, तो आप कैसे
सोच कर बैठे है की, आप दूसरों से
बेहतर प्रधान मंत्री है | आप और मनमोहन सिंह में क्या फर्क आप
बोलते है और वो कुछ नहीं बोलते बाकि सब समान | और याद रखिये
मनमोहन की पहली सरकार में भ्रष्टाचार के आरोप नहीं लगे थे वो दूसरी बार में थे | लोगों को ये सोचने पर मजबूर
मत कीजिये की मोदी देश के प्रधानमंत्री इसलिए नहीं है की वो सर्वश्रेष्ट है बल्कि
इसलिए है की जनता के पास कोई विकल्प नहीं था | और अगर परिस्थितियां स्वम से समझ
नहीं आती तो इंदिरा का कार्यकाल देख लीजिये उनके शासन में जंग और खालिस्तान का
मुद्दा उठा और उसका हल भी उन्होंने ही निकला | याद रखिये हमारे बाद दुनिया हमें किस
रूप में याद रखती है ये महत्त्वपूर्ण नहीं है, महत्त्वपूर्ण सिर्फ इतना है की हम
अपने आपको कैसे याद रखवाना चाहते है |
माननीय प्रधानमंत्री जी इंदिरा, लालबहादुर या वाजपेई ने जो किया, उस पर राजनीती में तो गलत कहा जा सकता है लेकिन वो जनता की नजर में हीरों है
| और रहेंगे भी | तो सवाल ये है की
आप कैसे जीना या याद रखना चाहते है | मैं सिर्फ इतना
कहना चाहता हूँ की बहुत हुई बाते, अब जख्म का
इलाज होना चाहिए ना की इस इन्तेजार में
बैठा जाये की हमारे प्यारे पडोसी उस पर दवा लगायेगें | क्यू की जख्म नासूर हो गया है, जैसे हमने पंजाब से खालिस्तान का नाम
मिटाया वैसे ही कश्मीर से भी पाकिस्तानी कश्मीर का नाम मिटना चाहिए |
नहीं तो एक काम की सलाह है की आप वापस
गुजरात चले जाये और हमें आपने हाल पर
छोड़ दे | कहीं ऐसा ना हो की देश जाते जाते गुजरात भी चला जाये |
शुभकामनाओ के साथ आपके द्वारा की गई वास्तविक प्रतिक्रिया के इन्तेजार में |
दीप